तीर्थाटन : भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग

 हिंदू धर्म में बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का बड़ा महत्व है। इन सभी से शिव की रोचक कथाएं जुड़ी हुई हैं।

देश में बाहर ज्योतिर्लिंग 


भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं। पुराणों में कहा गया है कि जब तक महादेव के इन 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन नहीं कर लेते, आपका आध्यात्मिक जीवन पूर्ण नहीं हो सकता । हिंदू मान्यता के अनुसार ज्योतिर्लिंग कोई सामान्य शिवलिंग नहीं है । ऐसा कहा जाता है कि इन सभी 12 जगहों पर भोलेनाथ ने खुद दर्शन दिए थे, तब जाकर वहां ये
ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए ।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन परिपूर्ण होने के बाद ज्योतिर्लिंगों के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी निम्नवत है।

1  -  श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग :


श्री केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड के हिमालय पर्वतमाला में स्थित है। श्री केदारनाथ एक ऐसा तीर्थ है , जिसकी मान्यता  बारह ज्योतिर्लिंग  और " उत्तराखंड के चारधाम " में होती है। यहाँ जाकर शिवजी के दर्शन करना किसी सौभाग्य से कम नहीं है। यह मंदिर काफी उंचाई पर बना है ।
शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। श्री केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है । वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है । और नवम्बर माह में वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व बन्द हो जाता है । मन्दिर बन्द के समय केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। और उखीमठ में ही पूजा होती हैं।

दर्शन : दिनांक : वर्ष 1990 -95 एवं 10 अक्टूबर 2020
केदारनाथ एक ऐसा नाम जिससे भारत का रहने वाला लगभग हर व्यक्ति परिचित है । यह  मंदिर तीन ओर से पहाड़ो से घिरा हुआ है और यह धार्मिक महत्त्व के साथ साथ अपनी नैसर्गिक प्राकृतिक ख़ूबसूरती के लिए भी जाना जाता है ।


2 - त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग   :
श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट् के नासिक 
जिले में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है । काले पत्‍थरों से बना यह मंदिर देखने में बेहद सुंदर नज़र आता है। मंदिर की नक्‍काशी भी अति सुंदर है।
मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- जो तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है, यहां पर ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं । अन्‍य सभी ज्‍योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।

दर्शन : दिनांक : 08 मार्च 2018
इस मंदिर में प्रवेश से पहले कुछ यात्री कुशावर्त कुंड में नहाते हैं और कुछ पंच स्नान करते हैं ।मंदिर में कुछ भक्त जन अपनी- अपनी मुराद पूरी करने के लिए कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्‍न करवाते हैं। 

3 .  श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग : 


यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है । श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है । सोमनाथ मंदिर विश्व का प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है ।

साउंड एंड लाइट शो :
मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है।
बाणस्तम्भ :
मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। इस स्तम्भ को 'बाणस्तम्भ' कहते हैं। 

दर्शन : दिनांक : 13-14. दिसम्बर 2018
लोककथाओं के अनुसार सोमनाथ में भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया।

4 -  नागेश्वर ज्योतिर्लिंग   :
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर गुजरात राज्य के द्वारिका  से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गर्भगृह मे ज्योतिर्लिंग के ऊपर एक चांदी का आवरण चढ़ा रहता है‌। ज्योतिर्लिंग पर एक चांदी के नाग की आकृति बनी हुई है।ज्योतिर्लिंग के पीछे माता पार्वती की मूर्ति स्थापित है।

 गर्भगृह में पुरुष भक्त सिर्फ धोती पहन कर ही प्रवेश कर सकते हैं, यदि उन्हें अभिषेक करवाना है । मंदिर परिसर में भगवान शिव की पद्मासन मुद्रा में एक विशालकाय और बहुत सुन्दर मूर्ति  है ।

दर्शन : दिनांक : 14 दिसम्बर 2018
कृष्ण नगरी द्वारका में स्थित है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की मान्यता है कि ये ज्योतिर्लिंग सभी प्रकार के जहर के प्रभाव से सुरक्षित है ।

5  - श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग  :

रामेश्वरम एक पवित्र तीर्थ स्थल है। जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है ,वही दक्षिण में रामेश्वरम की है। रामेश्वरम एक ऐसा तीर्थ है जिसकी मान्यता भारत के चार धामों और बारह ज्योतिर्लिंगों में होती है । यहां पर श्रद्धालु  22 कुंड में स्नान करने के बाद शिवलिंग में गंगा जल चढाने के साथ पूजा अर्चना करते हैं।
रामेश्वरम मंदिर, को  रामनाथस्वामी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है । यह मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है । इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु यात्रा करने आते है और ईश्‍वर का आर्शीवाद लेते है।

रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है। यह उत्तर-दक्षिण में 197 मी. एवं पूर्व-पश्चिम 133 मी. है जिसकी चौड़ाई 6 मी. तथा ऊंचाई 9 मी. है। गोपुरम, मंदिर के द्वार से लेकर मंदिर का हर स्तंभ, हर दीवार वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत है।

दर्शन : दिनांक : 28 जनवरी 2019
मान्यताओं के अनुसार रावण बध के बाद भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना कर यहाँ शिवजी की पूजा की।

6  - काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग  : 
यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थल उत्तर प्रदेश राज्य के बनारस शहर में स्थित है । इसे वाराणसी व काशी भी कहा जाता है । और काशी को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है ।पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव  गंगा के किनारे इस नगरी में निवास करते हैं। उनके त्रिशूल की नोक पर काशी बसी है। भगवान शिव काशी के पालक और संरक्षक है, जो यहां के लोगों की रक्षा करते हैं।

कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने के लिए तपस्या की । और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सृष्टि की रचना की है ।
काशी के कोतवाल :
भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। काशी विश्‍वनाथ में दर्शन से पहले भैरव के दर्शन करना होते हैं तभी दर्शन का महत्व माना जाता है।

दर्शन : दिनांक : 07 फरवरी 2019
काशी में मिलता है मोक्ष :
ऐसी मान्यता है कि वाराणसी या काशी में मनुष्य के देहावसान पर स्वयं महादेव उसे मुक्तिदायक तारक मंत्र का उपदेश करते हैं। इसीलिए अधिकतर लोग यहां काशी में अपने जीवन का अंतिम वक्त बीताने के लिए आते हैं और मरने तक यहीं रहते हैं। इसके लिए काशी में पर्याप्त व्यव्था की गई है। यह शहर सप्तमोक्षदायिनी नगरी में एक है। 

7- घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग  : 

महाराष्ट्र के औरंगाबाद से लगभग 30 किमी दूर  एक पहाड़ी क्षेत्र में घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर में तीन द्वार हैं एक महाद्वार और दो पक्षद्वार। गर्भगृह के ठीक सामने एक विशाल सभाग्रह है। 24 पत्थर के स्तंभों पर सभा मंड़प बनाया गया है. स्तंभों पर सुन्दर नक्काशी की गई है। मंडप के मध्य में कछुआ है और दिवार की कमान पर गणेशजी की मूर्ति है। सभा मंड़प में नंदी भगवान की मूर्ति है, जो शिवलिंग के ठीक सामने है। मन्दिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को शर्ट उतारना होता है।

दक्षिण भारतीय शैली में बना घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर 44,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसे लाल रंग के पत्थरों से बनाया गया है। घृष्णेश्वर मंदिर में तीन द्वार बने है, एक महाद्वार और दो पक्षद्वार। सभा मंड़प 24 पत्थर के स्तंभों पर बना है, इन स्तंभों पर जटिल नक्काशी की गई है। मंदिर के परिसर में लाल पत्थर की दीवारें पर भगवान विष्णु के दशावतार के द्रश्य को दर्शाया गया है और कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।

ड्रेस कोड : मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को शर्ट / कमीज एवं बनियान तथा बेल्ट उतारना पड़ता है ।

दर्शन  : दिनांक : 15 जनवरी 2020
घृष्णेश्वर मन्दिर के पास विश्व प्रसिद्ध अजंता गुफाएं, एलोरा की गुफाएं स्थित है। जिन्हें देखने के लिए पूरे विश्व से पर्यटक यहाँ आते है। इसके साथ साथ औरंगाबाद में घूमने के लिए बीबी का मकबरा, सिद्धार्थ गार्डन, सलीम अली लेक, बानी बेगम गार्डन, बौद्ध गुफाएँ, जैन गुफाएं,  सोनेरी महल आदि प्रसिद्ध स्थल है

8 - भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग  :
महाराष्ट्र में स्थित तीन भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, पुणे से लगभग 115 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक बहुत ही पवित्र तीर्थ स्थान है। सहाद्रि नामक पर्वत की हरि-भरी वादियों से घिरा यह भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग भगवान शंकर के 12 दर्शनीय ज्योतिर्लिंगों में छटवें स्थान पर है। भीमा नदी के उद्गम स्थल पर शिराधन गांव में स्थित इस मंदिर का शिवलिंग मोटा होने के कारण यह मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग अमोघ है, इसके दर्शन का फल सभी मनोकामनाए पूर्ण करता है। 

अधिकतर मंदिरों तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ चढ कर जाना होता है, परंतु श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर तक पहुँचने के लिए 250 के आस-पास सीढ़ियों को उतरना पड़ता है।
इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है, जिसके कारण इस मंदिर को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के पास ही भीमा नदी बहती है जो कृष्णा नदी में जाकर मिल जाती है ।

मंदिर के गर्भग्रह के सामने नंदी महाराज एवं कच्छप देव   विराजमान हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर बाईं ओर भगवान गणेश   की मूर्ति है और दाईं ओर श्री कालभैरव की मूर्ति है। शिवलिंग में एक ऊर्ध्वाधर छेद है।  मंदिर के सामने की ओर देवी पार्वती की मूर्ति है।

दर्शन :  दिनांक  :   18 जनवरी 2020
भीमाशंकर मंदिर जाने के लिये छोटी-छोटी पहाड़ियों एवं हरियाली से सजे प्रकृति का अनोखा दृश्य देखने को मिलता है । मंदिर के चारों ओर का नजारा भी बेहद सुंदर है । यहां के सौंदर्य की बदौलत शिव में अटूट आस्था रखने वाले भक्त ही नहीं बल्कि पर्यटक भी इधर खिंचे चले आते हैं ।


9 - मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग :
श्रीशैलम् आंध्रप्रदेश 

यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर श्रीशैलम् में स्थित है। श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को “दक्षिण का कैलाश” के नाम से भी जाना जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिव और पार्वती का संयुक्त रूप है । मल्लिका का अर्थ है पार्वती और अर्जुन शब्द शिव का वाचक है। इस तरह से इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की ज्योतियां प्रतिष्ठित हैं ।

श्रीशैलम मंदिर की दीवारों और स्तंभों का शिल्प बहुत ही सुंदर और बेहतरीन वास्तुकला में से एक है। मंदिर में 4 गेटवे टॉवर हैं, जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। मंदिर का गर्भगृह बहुत छोटा है और एक समय में अधिक लोग नही जा सकते। इस कारण यहाँ दर्शन के लिए लंबी प्रतीक्षा करनी होती है। यहाँ टेड़ी-मेड़ी पाइपों से घूमने के बाद एक खुली सी जगह मे जाकर मन्दिर में प्रवेश करना होता है  ।

दर्शन : दिनांक : 20 अक्टूबर 2021

श्रीशैलम हैदराबाद से 254 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां
मन्दिर तक पहुंचने के लिए घने जंगलों के बीच होकर सड़क मार्ग द्वारा जाया जाता है। रास्ते में शैल बांध से 290 मीटर की ऊंचाई से गिरते प्रबल जलावेग भी नज़र आता है।

10- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग :
मध्यप्रदेश की तीर्थनगरी उज्जैन में बाबा महाकालेश्वर का मन्दिर है । भगवान महाकालेश्वर को "महाकाल " भी कहा जाता है
मन्दिर में भगवान शिव 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' के रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह में नंदी दीप सदैव प्रज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है।
महाकालेश्वर मन्दिर 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में  श्री महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही करने दिए जाते हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है।

महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षणों में भगवान महाकाल की भस्म आरती, है। कालों के काल महाकाल के यहां प्रतिदिन अलसुबह भस्म आरती होती है। गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल ,पलाश , बड़ , अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर जो भस्म बनता है। उसे कपड़े से छान लिया जाता है। इसी भस्म को शिवजी को अर्पित किया जाता है। 

दर्शन : दिनांक : 24 नवम्बर 2021
मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी अपने इतिहास के लिए काफी प्रसिद्ध है । इसके साथ ही यहां पर कई प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर भी है जिनमें लोगों की गहरी आस्था है ।

11- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग :

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर से 80 किलोमीटर, और उज्जैन से 133 किलोमीटर की दूरी पर स्थित  है । ओंकारेश्वर अन्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों से अलग है क्योंकि यहां भगवान शिवजी दो रूपों में विराजमान हैं एक ओंकारेश्वर और दूसरे ममलेश्वर । दो रूपों में स्थित होने पर भी ज्योतिर्लिंगों की गणना में यह ज्योतिर्लिंग एक ही गिना जाता है। श्री ओंकारेश्वर शिवलिंग के ऊपर निरंतर जल अर्पित होता रहता है। मंदिर की पहली मंजिल पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते है। दूसरे मंजिल पर श्री महाकालेश्वर लिंग मूर्ति के दर्शन होते है। 

मंदिर का मंडप अत्यंत मनोहारी है। 60 ठोस पत्थर के स्तंभों पर यक्षी आकृतियों उकेरी गयी हैं। मंदिर के चारों ओर भित्तियों पर देवी-देवताओं के चित्रों की नक्काशी की गयी है। मुख्य गर्भगृह में शिवलिंग अभिषेक प्रतिबंधित है। मंदिर प्रांगण में “अभिषेक हॉल” बनाया गया है, जहाँ पर पुजारियों द्वारा अभिषेक संपन्न करवाया जाता है।
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग –
अमलेश्वर भी ज्योतिर्लिंग है ( अमलेश्वर को ही ममलेश्वर कहा जाता है ) यह मंदिर नर्मदा के दक्षिण तट पर विष्णुपुरी में है।

पहले ओंकारेश्वर के दर्शन करने का नियम है और लौटते समय ममलेश्वर के दर्शन करने का नियम है। ममलेश्वर मंदिर प्राचीन वास्तुकला एंव शिल्पकला का अदभुत नमूना है। 

दर्शन : दिनांक : 25 नवम्बर 2021

ओंकारेश्वर के लिए बस या कार विष्णुपुरी तक आती है। यहा से नौका द्वारा नर्मदा जी को पार कर सीढ़ियों से मन्दिर जाना होता है। जो नौका से नही जाना चाहते है वह पुल से पैदल जा सकते हैं । जो लगभग तीन किलोमीटर पड जाता है।

12 - वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग :


वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखण्ड राज्य के देवघर शहर में स्थित है।
वैद्यनाथ  मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव जी का भव्य मंदिर है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वंय भगवान विष्णु ने की थी। यहां मां पार्वती का मंदिर शिव जी के मंदिर से जुड़ा हुआ है। यह वही पवित्र स्थल है जहां शिव और शक्ति  का मिलन होता है। एक साथ ज्योतिर्लिंग और शक्ति  कहीं और देखने को नहीं मिलता है। 
वैद्यनाथ धाम में अनेक रोगों से छुटकारा पाने हेतु भी बाबा का दर्शन करने श्रद्धालु आते हैं। ऐसी प्रसिद्धि है कि श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की लगातार आरती-दर्शन करने से लोगों को रोगों से मुक्ति मिलती है।

दर्शन : दिनांक : 10-12 अगस्त 2022

बाबा बैद्यनाथ यहां आने वाले की सभी श्रद्धालुओं मनोकामनाएं पूरी करते हैं । इसलिए इस शिवलिंग को 'कामना लिंग' भी कहते हैं ।

सारांश :
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के मंदिर सनातन धर्म के बहुत ही पवित्र मंदिर है। इन मन्दिरों में भक्तो का तांता लगा रहता है ।  दूर दूर से लोग पावन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने आया करते हैं। और अपने ईष्ट के दर्शन करके धन्य हो जाते है ।

        हर सफरनामा किसी अपेक्षा से प्रारंभ होता है!
        और कोई ना कोई अनुभव के साथ समाप्त होता है!!

   भारत एक खूबसूरत राज्यों से सजा एक ऐसा देश है जिसकी अनेकों बोलियां और उसकी अलग अलग अपनी ही परम्पराएं हैं। इसी तरह पहाड़ हो या समतल क्षेत्र, सभी की अपनी अपनी खूबसूरत कथायें भी हैं और ऐसी ही, ना जाने कितनी सारी खूबसूरत जगहें हैं। जहां सभी का अपना अपना रोचक इतिहास भी मौजूद है।